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Light as a feather!

Once in a while, I wish I could fly! Neither a pretty one, Nor too bad, Nor too high, I wish I could fly. Not across the oceans, Nor over the peaks, With my tiny beaks, I wish I could fly! Not that I want to be  A colorful one, Nor too nasty! I am fine! Even if my eyes aren't pearl like, Even if my bones aren't hollow, Even if skin isn't poetic, Even if my head isn't crowned! I don't want to be a bird, I like the way I am! Though I wish I could fly! Not literally,  But yeah, metaphorically! I wish my hopes dive into river, And come out with a reward! Rise high later! I wish my destiny migrate, Across the universe! Season to season! I wish by end of the day, I find peace, I wish my heart is free, Young and Felice, As light as a feather, I wish my heart holds, All misery together, Still manage to feel light, As light as a feather! As light as a feather!!

सब्र।।

ना मैने उसे देखा है ना मैं इसे कभी देख पायी, ना उस पर किसी का बस चल पा रहा ना इस पर मैं कभी अपना बस चला पायी, ना वो किसी के रोके रुकने को तैयार है ना इसे मैं कभी शांत कर पायी, संक्रामक वो भी काफी है, और चाह कर भी मैं इसे फैलने से नहीं रोक पायी। एक शैतान बाहर अपना खौंफ बनाए बैठा है पर एक घातक शैतान मेरे अन्दर भी रहता है, वो शायद छूने से फैलता है, ये तो सिर्फ होने से फैल रहा है, उसका खिलौना तो इंसान बन गया, पर ये तो इंसान के जज़्बातों से खेल रहा है। उस से बचने के लिए लोग दूर रहने लगे है, मगर ये तो खुद ही दूरियां बनाए जा रहा है। बहुत सुना है उसके बारे में, पर ये ज़ालिम तो खुद मेरी ही आवाज़ दबाए जा रहा है। उसका नाम तो हम सभी जान चुके, इसको क्या नाम दू ये कोई कण नहीं ये तो भीतर छुपा अंधेरा है। खैर छोड़ो, क्या फायदा इन्हे इतना बड़ा बनाने का, कुछ कोशिश करते है चलो, खुदका मनोबल बढ़ाने का, अंत जब हर चीज़ का तय है, तो फिर किस नाम का ये भय है, थोड़ी सब्र, थोड़ा इत्मीनान, एक सफल प्रयास से परिचय, बस इन शैतानों का विनाश तय है। कुछ

खिड़की

शाम की चाय और खिड़की से एक नज़ारा, अच्छा लगा पंछियों को चहकता देख कर, एक ख़्याल ये भी था, दोबारा कहीं इनसे ये छीन ना जाए!! आज वो एक बड़े से घर की बड़ी सी खिड़की पर टंगा एक पिंजरा याद आ रहा है, जिसमे दो बेहद खूबसूरत मिट्ठू हुआ करते थे। काफी कुछ एक जैसा था हमारी आज की स्थिति  और उन मिट्ठुओ की सामान्य जिंदगी में। उनके पास भी आसमां देखने का एक ही साधन था, और आज हमारे पास भी, खिड़की।। हमारे हाथ में तो फिर भी काफी कुछ है, बटन दबाया, मम्मी को फोन लग गया,  या किसी दोस्त से हाल पूछ लिए, जो मन चाहा देख लिया, जो मन चाहा पढ़ लिया। खाना बनाना भी सीख ही लिया है, और घर साफ रखना भी। उन मिट्ठूओ को तो ये भी नहीं पता था, परिवार और दोस्त कहां है, है भी या नहीं, पता नहीं। मिर्ची दी तो वो खा ली, रोटी का टुकड़ा दिया तो वो। सफाई कर दी तो ठीक, वर्ना उसी रोटी में खेल कर उसी को लपेट कर सो गए। आज एक ख्याल ये भी आ रहा था, कपाटों में जो ख़ूबसूरत दुपट्टे रखे है, काफी दिन हो गए बाहर निकाले, और पता नहीं कितने दिन और ना निकले। उन मिट्ठूओ के पंख भी काफी रंग

ज़रा सोच ए राही...

जो अल्फाजों में बयां हो जाए वो जज़्बात ही क्या, जहां कहानी रुक जाए वो ठहराव ही क्या। जो आसमां को छूने की इच्छा ना रखे वो लहर ही क्या, जो मेरे घर तक ना जाए वो नाचिज़ सड़क ही क्या, वो नाचिज़ सड़क ही क्या। जो खुद से इश्क ना करने दे वो अहंकार ही क्या, जो बंधिशो में रुक जाए ऐसे मेरे शौक कहा, जो चार दिवारी में कैद हो जाए वो बदनसीब ख़्वाब ही क्या, और जो शौक रुकने लगे, जो ख्वाब घुटने लगे, ऐ आइने तू ही बता, कौड़ियों के भाव का इसमें जुनून नहीं है क्या, जुनून नहीं है क्या! जो गिरकर उठना ना सिखाए, वो ठोकर ही क्या, और जो मंजिल खोने का डर ना दे, जिस पर कदम बढ़ाने पर रूह खौंफ ना खाएं, वो चौराह क्या,  वो कमबख्त चौराह ही क्या! भटक कर घर ना लौट पाए, इतनी नाकाम तेरी शक्सीयत है क्या, ज़रा सोच ए राही, और बता, ऐसे ही भटक जाए, तू इतनी नाकाम शक्सीयत है क्या, मेरे दोस्त, तू इतनी नाकाम शक्सीयत है क्या!!

कितने पहरे, कितने चेहरे!

महफ़िल में 4 लोग थे, मुलाक़ात 16 से हो गई, एक हस्ती के चेहरे 4, समझते समझते सुबह हो गई! हर शख्स का एक चेहरा मेरे किसी न किसी पहलू से मिलता था, हर किसी के अंदर, एक चेहरा मेरा भी रहता था! किसी के ख्याल मेरे जैसे थे, किसी में आए बदलाव, किसी की आदत मुझसे मिलती थी, तो किसी के अंदर उठते सवाल! किसी के अंदर वो बच्चा था जिसके साथ में बचपन में लूका-छुपी खेला करती थी, तो किसी के अंदर वो अनुभव था जो दादाजी चाय के साथ बाँटा करते थे! किसी के अंदर दबी हुई ख़्वाहिश थी जो मेरी भी थी कभी, किसी के हाथों में ऐसा स्वाद था, जिसका महज़ विवरण ही मुंह तर कर गया! काफ़ी खुश मिज़ाज थे वो 16 चेहरे! अच्छा लगा उनसे मिलकर! लगता है एक शाम और बिताना पड़ेगी इनके साथ, इन चारों को पूरा समझने के लिए, गहराई में जाकर, पहरो को कुरेद कर, उनमें छुपे चेहरों को ढूंढने के लिए! पहरो के पीछे जो चेहरे है, उन्हीं में राज़ दफ़न गहरे है, उनसे रूबरू होने पर ही कह पाउंगी, ये कुछ नए दोस्त अब मेरे है!

Rains and brains!

  Hey all! Last evening I was asked by a friend about my thoughts on rain! Before moving further kindly take a minute and collect your thoughts you get when you hear of rain or rainy season or even when you feel that pleasant aroma which indeed, re-joys you. . . . . . . So if you have collected any thoughts than let us compare yours with mine and if you have ignored my request, anyways, let us come to my thoughts!  😁   First thought, Fritters! Oily, crunchy, spicy, tongue satisfying-mouth watering taste of potato, onion, spinach, maize fritters served with mint chutney and in more trendy way, cheese, corn, jalapeno fritters (my current favorite  😍 )  Second thought, a new challenge while going to work! 3-times traffic, puddles, free-hand design of mud on washed and ironed clothes, and that very annoying and un-invited rain/shower especially when we are carrying no umbrella or raincoat with us. After putting some pressure on my lazy

मोड़…

शुरू करने का शौक है, ख़त्म करने की फितरत नहीं उड़ान तो भर चुका, सीमा पर पहुँचना ही है, इसकी इसे पाबंदी नहीं। जज़्बे की कोई कमी नहीं, मंज़िल की कोई खास चाह नहीं। हां। है ख़ामी मुझमें। चीज़ो को ख़त्म ना करने की, बीच में छोड़ जाने की, लक्ष्य तक पहुंचने से पहले, रास्ते से बहक जाने की। मंझधार से निकलना मक़सद था मेरा, शायद मंज़िल तक पहुंचने का जुनून नहीं। चलने को तैयार है, उड़ने को बेताब है। मेरा मन तो चंचल है, तेरा क्यों नाबाद है।। काश तू ये समझता, जहां आज ये कदम रुके है, वो इस जंग की हार नहीं, अगले युद्ध की शंखनाद है।। कड़ियां यू हीं जुड़ती चलेगी, पंक्तियां यूं ही बढ़ती चलेगी, रास्ते में मोड़ आते रहेंगे, जब तक सांसे है, मेरी ये कहानी,, इसी तरह चलती रहेगी।। इसी तरह चलती रहेगी।।