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कितने पहरे, कितने चेहरे!

महफ़िल में 4 लोग थे, मुलाक़ात 16 से हो गई, एक हस्ती के चेहरे 4, समझते समझते सुबह हो गई! हर शख्स का एक चेहरा मेरे किसी न किसी पहलू से मिलता था, हर किसी के अंदर, एक चेहरा मेरा भी रहता था! किसी के ख्याल मेरे जैसे थे, किसी में आए बदलाव, किसी की आदत मुझसे मिलती थी, तो किसी के अंदर उठते सवाल! किसी के अंदर वो बच्चा था जिसके साथ में बचपन में लूका-छुपी खेला करती थी, तो किसी के अंदर वो अनुभव था जो दादाजी चाय के साथ बाँटा करते थे! किसी के अंदर दबी हुई ख़्वाहिश थी जो मेरी भी थी कभी, किसी के हाथों में ऐसा स्वाद था, जिसका महज़ विवरण ही मुंह तर कर गया! काफ़ी खुश मिज़ाज थे वो 16 चेहरे! अच्छा लगा उनसे मिलकर! लगता है एक शाम और बिताना पड़ेगी इनके साथ, इन चारों को पूरा समझने के लिए, गहराई में जाकर, पहरो को कुरेद कर, उनमें छुपे चेहरों को ढूंढने के लिए! पहरो के पीछे जो चेहरे है, उन्हीं में राज़ दफ़न गहरे है, उनसे रूबरू होने पर ही कह पाउंगी, ये कुछ नए दोस्त अब मेरे है!