ज़रा सोच ए राही...
जो अल्फाजों में बयां हो जाए
वो जज़्बात ही क्या,
जहां कहानी रुक जाए
वो ठहराव ही क्या।
जो आसमां को छूने की इच्छा ना रखे
वो लहर ही क्या,
जो मेरे घर तक ना जाए
वो नाचिज़ सड़क ही क्या,
वो नाचिज़ सड़क ही क्या।
जो खुद से इश्क ना करने दे
वो अहंकार ही क्या,
जो बंधिशो में रुक जाए
ऐसे मेरे शौक कहा,
जो चार दिवारी में कैद हो जाए
वो बदनसीब ख़्वाब ही क्या,
और जो शौक रुकने लगे,
जो ख्वाब घुटने लगे,
ऐ आइने तू ही बता,
कौड़ियों के भाव का
इसमें जुनून नहीं है क्या,
जुनून नहीं है क्या!
जो गिरकर उठना ना सिखाए,
वो ठोकर ही क्या,
और जो मंजिल खोने का डर ना दे,
जिस पर कदम बढ़ाने पर रूह खौंफ ना खाएं,
वो चौराह क्या,
वो कमबख्त चौराह ही क्या!
भटक कर घर ना लौट पाए,
इतनी नाकाम तेरी शक्सीयत है क्या,
ज़रा सोच ए राही,
और बता,
ऐसे ही भटक जाए,
तू इतनी नाकाम शक्सीयत है क्या,
मेरे दोस्त,
तू इतनी नाकाम शक्सीयत है क्या!!
👍👍🤘
ReplyDeleteThat's a really good one yar!!
ReplyDeleteAwesome... 🤟
Class, Behatrin
ReplyDeleteClass, Behatrin
ReplyDelete👏🏼👏🏼👏🏼👏🏼👏🏼👏🏼👏🏼
ReplyDeleteबहुत खूब यार!! काफ़ी गहरा लिखा है..
gr8 lines.....
ReplyDeleteGreat lines to remember with this ending yr.... Keep it up
ReplyDelete👌
ReplyDeleteGreat lines👌👌
ReplyDeleteBehtarin.. bilkul apki tarah❤️
ReplyDelete❤💯
ReplyDeleteProud of you..grest work bro
ReplyDeleteSupar
ReplyDeleteKya baat💚💚
ReplyDeleteWaah😍
ReplyDelete👏👏 bahut mast❤️
ReplyDeleteThank you so much everyone 🤗🤭
ReplyDelete❤❤👍
ReplyDeleteNice 👌
ReplyDeleteBhot Khoob! :-)
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