मोड़…
शुरू करने का शौक है,
ख़त्म करने की फितरत नहीं
उड़ान तो भर चुका,
सीमा पर पहुँचना ही है,
इसकी इसे पाबंदी नहीं।
जज़्बे की कोई कमी नहीं,
मंज़िल की कोई खास चाह नहीं।
हां। है ख़ामी मुझमें।
चीज़ो को ख़त्म ना करने की,
बीच में छोड़ जाने की,
लक्ष्य तक पहुंचने से पहले,
रास्ते से बहक जाने की।
मंझधार से निकलना मक़सद था मेरा,
शायद मंज़िल तक पहुंचने का जुनून नहीं।
चलने को तैयार है,
उड़ने को बेताब है।
मेरा मन तो चंचल है,
तेरा क्यों नाबाद है।।
काश तू ये समझता,
जहां आज ये कदम रुके है,
वो इस जंग की हार नहीं,
अगले युद्ध की शंखनाद है।।
कड़ियां यू हीं जुड़ती चलेगी,
पंक्तियां यूं ही बढ़ती चलेगी,
रास्ते में मोड़ आते रहेंगे,
जब तक सांसे है,
मेरी ये कहानी,,
इसी तरह चलती रहेगी।।
इसी तरह चलती रहेगी।।
Beautiful ❤
ReplyDeleteNice..
ReplyDeleteWahh..
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteBadhiya!
ReplyDeleteAhaan
ReplyDeleteBhot hard!
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteअदभुत ❤️
ReplyDeleteAmazing Sakshi...Beauitiful..Keep writing...
ReplyDeleteBhut badhiya..keep writing.
ReplyDeleteMast hai bawa....!! Maza a gaya...😍😎
ReplyDeleteMajboot 😀
ReplyDeleteThank you so much everyone 😊
ReplyDeleteBelow two lines are beauty👌
ReplyDeleteउड़ान तो भर चुका,
सीमा पर पहुँचना ही है,