वक्त...



बहता पानी है,
कभी तो बांध तोड़ेगा,
सागर है,
कभी तो किनारा छोड़ेगा।

बादल है,
कभी तो बरसेगा,
गगन की ऊंचाई पर है,
कभी तो वो भी रूठेगा।

आकाश है,
कही तो थमेगा,
मेरी नज़रे ना पहुँचे जहाँ,
कोई तो ठिकाना होगा।

हवा है,
कभी तो रुख मोड़ेगी,
जो आज साँस में घुली है,
क्या पता कल किस कश्ती को किनारे तक पहुँचा रही होगी।

वक्त है,
रफ्तार कभी तो बदलेगा,
मनमौजी है,
वो नही सुधरेगा।

चाहे कायनात ‘उसने’ लिखी है,
कभी तो मेरी सुनेगा।
कोई तो गद्य होगा उसमे,
जिस पर सिर्फ मेरा बस चलेगा।

चाँद में दाग है,
पर अमृत वही बरसाता है,
रावण का अंत हुआ था,
मगर महानरेश वही कहलाता है।

स्याही है,
कभी तो कलम पर लगाम खींचेगी,
कोरी लम्बी राहें है,
कभी तो मंज़िल भी झलकेगी।

अल्फ़ाज़ जब पीछे रह जाएंगे,
उस वक्त,
उस वक्त सिर्फ ख़ामोशी चीखेगी,
हवा भी वहीं मिलेगी,
सागर भी वहीं रुकेगा,
बादल भी वहीं बरसेंगे,
गगन भी वहीं थमेगा,

लेकिन वक्त अपनी रफ्तार नही छोड़ेगा,
मनमौजी हैं,
वो नहीं सुधरेगा।

वो ज़िद्दी है,
वो मनमौजी है,
वो नहीं सुधरेगा।।

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