......ये बंदिशें!


न चेन की, न डोरी की,
ये बंदिशें है, नज़रो की, उम्मीदों की!

न हाथ बंधे हैं, न पैर बंधे हैं
बंदिशें हैं दिल पर,  सोच पर!
न किसी ने कुछ कहा न किसी ने कुछ किया!
फिर भी....
ये अनकही बंदिशें हैं....
जज़्बातो की,  भावनाओं की!

कभी माँ के प्यार और चिंता की बंदिशे हैं,
तो कभी पिता के गुस्से और उम्मीद की!

कभी छोटे भाई बहन की मासूमियत की बंदिशे है
कभी दोस्त की यारी की!

ये अनकही बंदिशें हैं......
जज़्बातो की भावनाओं की!

ये बंदिशें कभी हँसाती है,
तो कभी रूलाती है,
कभी डराती है,
तो कभी प्यार का एहसास कराती है ये बंदिशें!

दूसरे तो बंदिशें लगाते ही हैं,
पर जब खुद की बंदिशे लग जाए,
तो अरमानों को बांध देती हैं ये बंदिशें!!

न सही है,  न गलत है
न अनजान है, न रू-ब-रू है ये बंदिशें!

ये अनकही बंदिशें हैं,
जज़्बातो की भावनाओं की!

ये अनकही बंदिशें हैं,
अरमानों की ख्वाबों की!

ये अनकही बंदिशें हैं,
लगाव की सम्मान की!

ये अनकही बंदिशें हैं मेरी.....
जिनने मुझे ही बांधा हुआ है!

अच्छी भी है और बुरी भी है!
पर ज़िन्दगी का सच है ये बंदिशें!
जिम्मेदारियों की कसौटी है ये बंदिशें!
मेरी मुझ पर ही हैं ये बंदिशें!
आख़िर ज़िन्दगी का सच है.....
....... ये बंदिशें!!

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